मधेश की खुशहाली पहाड़ी सत्ता के महलो में कैद है : मुरलीमनोहर तिवारी
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मुरलीमनोहर तिवारी (सिपु), बीरगंज,३ अक्टूबर | सबसे लम्बा आंदोलन। बंद, कर्फ्यू, गोली, हत्या, वार्ता और सहमती। देखने में यही दिखता है, पर धीरे-धीरे मधेश का मौसम बदल रहा है। पहाड़ी दल के मधेशी सांसद से जुड़ा सपना टूट गया। इनका इमान फुटपाथ पर बिखड़ गया। ये साबित हुआ की ये थोड़ा चारा छिटकर मधेश के सारे अधिकार बेच दिए। मधेश में इनका जनाधार मिट चूका है। आगामी सरकार में मंत्री की चासनी से मधेश को लुभाने की फ़िराक में है।
ए.माओवादी छोड़कर बाबुराम भट्टराई मधेश में आएं। उनका पार्टी छोड़ना पूर्वनियोजित है। मधेश मुद्दा सिर्फ बहाना है। अपने प्रेस कांफ्रेंस में मधेशी, थारु, जनजाति के लिए पार्टी छोड़ा ऐसा उल्लेख नहीं किया। उनका इस्तीफा संबिधान सभा में संबिधान बन्ने के समय आता तो संभवतः संबिधान नहीं बन पता। इतनी दमन और सहादत नहीं होती। इन्होंने संबिधान बन्ने के क्रम में प्रचंड का पुरजोर साथ दिया। ये जिस पद पर थे वहा भी अड़ जाते तो हालात बेहतर होते। इनके साथ जो भी मधेशी आएं है उनकी निष्ठा मधेश से ज्यादा ब्यक्ति विशेष पर है। आज सभी पहाड़ी नेता से मोहभंग करके मधेश आंदोलन बुलंदी पर है, तब इनका मधेश में आना छलावा मात्र है। ये मधेश के बजाय पहाड़ में सभा करके मधेश के समर्थन का प्रयाश करते तो उसे सार्थक माना जा सकता था।
मधेश अलग-अलग तरीके अपना कर अहिंसक आंदोलन कर रहा है। नाका बंद करना भी उसी का एक रूप है। गांव-गांव से लोग स्वस्फूर्त रूप से शामिल हो रहे है। दिन की तो बात ही क्या है, वहा तो रात में भी जगह नहीं है। “हम जगेंगे, मधेश जगेगा” नारा से आसमान तक गूंज रहा है। मानव श्रृंखला मेची से महाकाली तक बना, जो की विश्व रिकॉर्ड के साथ-साथ एक मधेश के मांग और जन समर्थन को सिद्ध करता है।
मधेश में नाकाबंदी पर पहाड़ से तीखी और हिंसक प्रतिक्रिया आई। पर्सा के पूर्व मुखिया जो की धोती पहने थे, काठमांडो में पहाड़ी समाज के हिंसा के शिकार हुए। पहाड़ में काम कर रहे चायवाला, सब्जीवाला, ठेलावाला, नाइ, मिस्त्री तक को नहीं छोड़ा गयाजबकि पुरे आंदोलन में मधेशी समाज से किसी पहाड़ी समाज पर कोई हमला नहीं हुआ। ये मधेश का धैर्य, सहिष्णुता और अहिंसा को दर्शाता है। अगर मधेश को अधिकार मिलता है तो मधेश में रह रहे पहाड़ी समाज भी लाभान्वित होगा, मगर वे मधेश के समर्थन में आगे नहीं आए। सबसे दुखद ये की इतने मधेशी की निर्मम हत्या के वावजूद इन्होंने कोइ हरकत नहीं दिखाई और पांच दिनों के नाकाबंदी में ये सड़क पर उतर गए। ये इनकी घटिया सोच की पराकाष्ठा है।
इनका चीन के प्रति एकतरफा लगाव, अंधभक्ति इनकी अज्ञानता को सिद्ध करता है। जिस लोकतंत्र प्राप्ति की लिए इतना विध्वंस हुआ, पुरे विश्व में चीन ही सबसे ज्यादा लोकतंत्र विरोधी देश है। ४ जून १९८९ में प्रजातंत्र का आंदोलन चीन के तियानमेन में हुआ। उस आंदोलन को दबाने के लिए सैनिक टैंकर से सैकड़ो आंदोलनकारी को कुचल कर मार दिया गया। उस देश से लोकतंत्र में मदद की उम्मीद बेवकूफी है। चीन से मदद का आश्वासन तो मिला, पर सबसे पहले चीन ने ही अपने देश से उड़ान बंद किया।
नेपाल का सबसे ज्यादा सहयोगी देश भारत है। नेपाल में प्रायोजित तरीके से भारत बिरोधी मुहीम चलाई जाती है। अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक साजिशों में नेपाल को मोहरा बनाया जा रहा है। अक्सर भारत पर नेपाली भूमि हड़पने का आरोप लगाया जाता है।नेपाली सिमा पर मधेशी रहते है, अगर ऐसा होता तो सबसे पहले मधेशियों की ज़मीन छिनी जाती, लेकिन ऐसा कही हुआ ही नहीं है। जो लोग बॉर्डर पर कभी आएं ही नहीं वो भारत पर लाक्षणा लगाते है। ये हकीकत है की मधेश की वजह से ही नेपाल की सीमाएं सुरक्षित है।
मधेश ने ऐसे सबिधान की मांग की थी जो आसुओं से नहाईं नहीं हो।मधेश की खुशहाली आश्मान पर टंगी है, पहाड़ी सत्ता के महलो में कैद है। इस संविधान से पहाड़ियों को मखमली बिस्तर मिलेगा तो मधेश के लिए चटाई भी नहीं है। मधेश के सारे ख्वाब पर चौकसी लग गई है। हमारी तमन्नाये खुदखुशी कर रही है। हमने चाहा था की भूख से दम तोड़ती जिंदगी से निजात मिलेगा, अब रोटियों के लिए लड़ाई नहीं होगी। आज निर्दोष, बेकसूरों का सस्ता लहू बह रहा है, बस्तिया जल रही है। मधेशियों का क़त्ल हो रहा है, बाक़ी देश नफरत के आग में जल रहा है। अगर मधेश को अधिकार मिल भी गया तो भी पहाड़ी समाज के मन की कड़वाहट सदियों तक रहेगी। अगर नीति मिला भी, तो नियत नहीं मिलेगा…और संघर्ष करते रहना होगा। जय मधेश।।                                                                    स्रोत :हिमालिनी 

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