संविधान संशोधन का नाटक,भारत को दिखाने के लिए तो नहीं किया जा रहा हैं ?
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कौन जाने किस घड़ी, वक़्त का बदले मिजाज़
गंगेश कुमार मिश्रा, कपिलवस्तु
★ क्या ओली जी की चाल को, मधेशी मोर्चा के नेता नहीं समझ पा रहे हैं ?
★तीन महीने का समय,क्या आन्दोलन को मन्थर करने के लिए पर्याप्त नहीं है ?
★संविधान संशोधन का नाटक,भारत को दिखाने के लिए तो नहीं किया जा रहा हैं ?
गंगेश कुमार मिश्रा, कपिलवस्तु
★ क्या ओली जी की चाल को, मधेशी मोर्चा के नेता नहीं समझ पा रहे हैं ?
★तीन महीने का समय,क्या आन्दोलन को मन्थर करने के लिए पर्याप्त नहीं है ?
★संविधान संशोधन का नाटक,भारत को दिखाने के लिए तो नहीं किया जा रहा हैं ?
संभलो कि सुयोग न जाय चला,
कब व्यर्थ हुआ, सदुपाय भला ।
बहुत कुछ कहती हैं, ये दो पंक्तियाँ ।
अवसर बार बार नहीं मिलता,अवसर मिलने पर भी जो चूक जाते हैं, उन्हें कभी
माफी नहीं मिलती। मधेश की यह लड़ाई, अधिकार से अधिक पहचान की लडाई है,
आत्मसम्मान की है, स्वाभिमान की है। क्या हम, ऐसे ही कायरों की तरह अपमान
सहते रहेंगे रु हमारी पहचान क्या है, ओली जी और इनके समुदाय वाले, हमें
नेपाली नहीं मानते, भारतीय बताने पर तुले रहते हैं। चेहरे से हम भारतीय
जैसे दिखते हैं, पर भारत हमें भारतीय नहीं, नेपाली मानता है। अब हम
जायें, तो कहाँ जायें, इधर कुआँ है, उधर खाई है।
बड़बोले प्रधानमन्त्री जी, आख़िर क्या जताना चाहते हैं , समझना जरुरी है,
बेपरवाही से उद्दण्डता भरा बयान कैसे दे पाते हैं, इस का एक ही कारण है,
जो मेरी समझ में आता है। वो है, मधेश के नेतृत्व में एक जुटता की कमी,
ऐसे अवसर पर मधेशी नेताओं को चाहिए, अपने व्यक्तिगत अहम् को छोड़ कर एक
झण्डे के नीचे आ जायें। राजनीति बाद में, कर लेंगे, पहले मधेश की
अस्मिता, इसकी अखण्डता को बचा तो ले जायें। बस यही सोच आ जाय, तो डंके की
चोट पर कहता हूँ। एक हप्ते के अन्दर अन्दर, मधेश प्रदेश की सीमाएं
रेखांकित कर दी जायेगी। क्योंकि नेपाली शासकों के पास, इतना नैतिक बल
नहीं है, जितना ये दर्शाते हैं। खोखले राष्ट्रवाद की बैसाखी पर, देश को
अपाहिज बना कर, कब तक, कहाँ तक ले जाएगी वर्तमान ओली सरकार।
ओली जी को मालूम है, मधेश में इनका कोई जनाधार नहीं है। इसलिए पहाड़ी
समुदाय, जिसके ये खुद भी नुमाइंदे हैं । इन्हीं को खुश करने के लिए,
मधेशियों को मख्खी, आम, जानवर, उद्दण्ड आदि उपनामों से नवाज़ते रहे
हैं। मेरे विचार से इसमें, वे सफल भी रहे, इतने अभावों के बावजूद,
काठमांडूवासी पहाड़ी समुदाय के लोगों ने थोड़ा सा भी प्रतिवाद नहीं किया।
वास्तविक तो ये है, इन्हें मधेश से व्यक्तिगत या पार्टीगत रुप से कुछ लाभ
मिलने की उम्मीद नहीं है।ऐसी स्थिति में, ये मधेश की माँगों को क्यों
सम्बोधित करेंगे रु अब प्रश्न यह उठता है, कि क्या ओली जी की चाल को,
मधेशी मोर्चा के नेता नहीं समझ पा रहे हैं रु
जब सात प्रदेश को बाँटा गया, कोई समस्या नहीं हुईस,रातो रात प्रारुप
तैयार हो गया। बात मधेश की आते ही, खलबली मच गई क्यों रु तीन महीने का समय,
बहुत पर्याप्त है, किसी भी आन्दोलन को मन्थर करने के लिए।
जिन दो माँगो को संबोधित करने के लिए, संविधान में संशोधन की तैयारी हो
रही है। बस एक, छलावा है, मधेश आन्दोलन को ग़ुमराह करने के लिए साथ ही
पड़ोसी भारत को खुश करने के लिए। आन्दोलन के दौरान ओली जी को, शहीद
मधेशियों के बजाय एक ही चिन्ता सताए रही तेल और रसोई गैस। समझो, एक बार
नहीं हजार बार समझो, ओली जी मूर्ख नहीं हैं।मिस्टर इण्डिया के मोगेम्बो
हैं।हर बात पर एक ही रट मोगेम्बो खुश हुआ।
कब व्यर्थ हुआ, सदुपाय भला ।
बहुत कुछ कहती हैं, ये दो पंक्तियाँ ।
अवसर बार बार नहीं मिलता,अवसर मिलने पर भी जो चूक जाते हैं, उन्हें कभी
माफी नहीं मिलती। मधेश की यह लड़ाई, अधिकार से अधिक पहचान की लडाई है,
आत्मसम्मान की है, स्वाभिमान की है। क्या हम, ऐसे ही कायरों की तरह अपमान
सहते रहेंगे रु हमारी पहचान क्या है, ओली जी और इनके समुदाय वाले, हमें
नेपाली नहीं मानते, भारतीय बताने पर तुले रहते हैं। चेहरे से हम भारतीय
जैसे दिखते हैं, पर भारत हमें भारतीय नहीं, नेपाली मानता है। अब हम
जायें, तो कहाँ जायें, इधर कुआँ है, उधर खाई है।
बड़बोले प्रधानमन्त्री जी, आख़िर क्या जताना चाहते हैं , समझना जरुरी है,
बेपरवाही से उद्दण्डता भरा बयान कैसे दे पाते हैं, इस का एक ही कारण है,
जो मेरी समझ में आता है। वो है, मधेश के नेतृत्व में एक जुटता की कमी,
ऐसे अवसर पर मधेशी नेताओं को चाहिए, अपने व्यक्तिगत अहम् को छोड़ कर एक
झण्डे के नीचे आ जायें। राजनीति बाद में, कर लेंगे, पहले मधेश की
अस्मिता, इसकी अखण्डता को बचा तो ले जायें। बस यही सोच आ जाय, तो डंके की
चोट पर कहता हूँ। एक हप्ते के अन्दर अन्दर, मधेश प्रदेश की सीमाएं
रेखांकित कर दी जायेगी। क्योंकि नेपाली शासकों के पास, इतना नैतिक बल
नहीं है, जितना ये दर्शाते हैं। खोखले राष्ट्रवाद की बैसाखी पर, देश को
अपाहिज बना कर, कब तक, कहाँ तक ले जाएगी वर्तमान ओली सरकार।
ओली जी को मालूम है, मधेश में इनका कोई जनाधार नहीं है। इसलिए पहाड़ी
समुदाय, जिसके ये खुद भी नुमाइंदे हैं । इन्हीं को खुश करने के लिए,
मधेशियों को मख्खी, आम, जानवर, उद्दण्ड आदि उपनामों से नवाज़ते रहे
हैं। मेरे विचार से इसमें, वे सफल भी रहे, इतने अभावों के बावजूद,
काठमांडूवासी पहाड़ी समुदाय के लोगों ने थोड़ा सा भी प्रतिवाद नहीं किया।
वास्तविक तो ये है, इन्हें मधेश से व्यक्तिगत या पार्टीगत रुप से कुछ लाभ
मिलने की उम्मीद नहीं है।ऐसी स्थिति में, ये मधेश की माँगों को क्यों
सम्बोधित करेंगे रु अब प्रश्न यह उठता है, कि क्या ओली जी की चाल को,
मधेशी मोर्चा के नेता नहीं समझ पा रहे हैं रु
जब सात प्रदेश को बाँटा गया, कोई समस्या नहीं हुईस,रातो रात प्रारुप
तैयार हो गया। बात मधेश की आते ही, खलबली मच गई क्यों रु तीन महीने का समय,
बहुत पर्याप्त है, किसी भी आन्दोलन को मन्थर करने के लिए।
जिन दो माँगो को संबोधित करने के लिए, संविधान में संशोधन की तैयारी हो
रही है। बस एक, छलावा है, मधेश आन्दोलन को ग़ुमराह करने के लिए साथ ही
पड़ोसी भारत को खुश करने के लिए। आन्दोलन के दौरान ओली जी को, शहीद
मधेशियों के बजाय एक ही चिन्ता सताए रही तेल और रसोई गैस। समझो, एक बार
नहीं हजार बार समझो, ओली जी मूर्ख नहीं हैं।मिस्टर इण्डिया के मोगेम्बो
हैं।हर बात पर एक ही रट मोगेम्बो खुश हुआ।