भारत के गाली देने वाली जुवान मधेश के दर्द को क्यों नहीं देख रहे ?
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श्वेता दीप्तिश्वेता दीप्ति , काठमांडू , २३, सेप्टेम्बर |
मुझे या मेरे जैसे मधेश के लिए लिखने वालों को गालियाँ दी जा रही हैं, इसमें कोई एतराज नहीं है । आप जी भर कर गाली दें क्योंकि आप एक गणतंत्र में साँसें ले रहे हैं गाली देने वाली जुवान और संचार माध्यम मधेश के दर्द को क्यों नहीं देख रहे ?
नेपाल के नवनिर्मित संविधान के जारी होने के साथ ही भारत के द्वारा लगातार दो विज्ञप्तियाँ जारी हुईं और दोनों में अगर कुछ विशेष था तो यह कि भारत ने मधेश में हो रहे हिंसा पर चिन्ता जताई और उम्मीद की कि अभी भी मधेशियों को साथ लेकर चला जा सकता है ।
अगर मधेश की जनता सिर्फ मधेशी नहीं नेपाली हैं तो उसकी मौत पर पहाड़ की जनता की आँखों में आँसू क्यों नहीं है ?
किन्तु इसके पीछे एक खास वर्ग को अगर कुछ दिखा तो यह कि भारत गैरकूटनीतिक वक्तव्य दे रहा है और नेपाल के आन्तरिक मामले में दखल दे रहा है । खुले मंच से शान के साथ कहा गया कि विदेशियों की सलाह को नहीं माना जाएगा ।अगर मधेश की जनता सिर्फ मधेशी नहीं नेपाली हैं तो उसकी मौत पर पहाड़ की जनता की आँखों में आँसू क्यों नहीं है ?किन्तु इसके पीछे एक खास वर्ग को अगर कुछ दिखा तो यह कि भारत गैरकूटनीतिक वक्तव्य दे रहा है और नेपाल के आन्तरिक मामले में दखल दे रहा है । खुले मंच से शान के साथ कहा गया कि विदेशियों की सलाह को नहीं माना जाएगा ।
देश के एक महत्वपूर्ण हिस्से को आग में झोंककर नए नेपाल का निर्माण नहीं हो सकता और मित्र राष्ट्र को नाराज कर नेपाल विकसित होने की सोच रहा है तो यह तो और भी अच्छी बात है कम से कम आत्मनिर्भर तो नेपाली जरुर बन जाएंगे, यहाँ के युवाओं को विदेशों में जाना नहीं पड़ेगा, यहाँ की बेटियाँ अपने देश में सुरक्षित रहेंगी । इससे अच्छी और बड़ी बात तो हो ही नहीं सकती है ।
चाहे वह सभ्यता और संस्कार के दायरे में हो या उससे बाहर किन्तु एक अकाट्य सत्य है कि देश अपने इतिहास को बदल नहीं सकता । नेपाल के राजनीतिक परिदृश्य के बदलाव में और राजतंत्र से मुक्त होने में भारत का क्या हाथ रहा है यह बताने की आवश्यकता नहीं है । भारत की भूमि का किस तरह नेपाली नेताओं ने नेपाल की राजनीतिक लड़ाई के लिए उपयोग किया वह भी याद दिलाने की बात नहीं है ।भारत भी ऋणी है नेपाल की, या यूँ कहें कि मधेश की धरती का जिसने भारतीय स्वतन्त्रता सेनानियों को अपनी धरती पर पनाह दी थी और आज अगर भारत मधेश में हो रहे दमन के प्रति चिन्तित है तो यह गलत कैसे हो गया ? यह गलत तब होता जब आज तक किसी ने किसी भी अवस्था में भारत का सहयोग नहीं लिया होता । भारत की चिन्ता उसकी सुरक्षा व्यवस्था को लेकर जायज है, वह नेपाल से अगर कुछ चाहता है, तो यह कि नेपाल की धरती भारत विरोधी कार्यों के लिए प्रयोग ना की जाय और यह चाहत किसी भी राष्ट्र के लिए गलत नहीं है । अपनी सुरक्षा हर कोई चाहता है, हम भी चाहते हैं । किन्तु आज जो दृश्य उभर कर आ रहा है उससे यह जाहिर सी बात लग रही है कि भारत को नकार कर चीन के अस्तित्व को स्वीकार किया जा रहा है जबकि भौगोलिक दृष्टिकोण से यह नेपाल के लिए कभी भी वैज्ञानिक सिद्ध नहीं हो सकता | स्वाभिमान और राष्ट्रप्रेम की दुहाई देने वाले यह क्यों नहीं सोच रहे कि
भारत के द्वारा नाकाबन्दी की बात सामने आ रही है, जबकि फिलहाल ऐसा है नहीं लेकिन बिना किसी आधिकारिक जानकारी के नेपाल में कटु आलोचनाओं का दौर भी जारी है, और साथ ही गालियों की बौछार भी । यह सही है कि भारत सुरक्षा के कारणों को दिखाकर और बिहार में होनेवाले चुनाव को वजह बनाकर अपनी नीति की घोषणा कर रहा है और अगर भारत नाकाबन्दी कर रहा है तो चिन्ता किस बात की है, चीन तो है न हमारी भूख मिटाने को
नेपाल किसी ना किसी के वर्चस्व को ही स्वीकार करने जा रहा है और यह नेपाल की नियति है । देश के एक महत्वपूर्ण हिस्से को आग में झोंककर नए नेपाल का निर्माण नहीं हो सकता और मित्र राष्ट्र को नाराज कर नेपाल विकसित होने की सोच रहा है तो यह तो और भी अच्छी बात है कम से कम आत्मनिर्भर तो नेपाली जरुर बन जाएंगे, यहाँ के युवाओं को विदेशों में जाना नहीं पड़ेगा, यहाँ की बेटियाँ अपने देश में सुरक्षित रहेंगी । इससे अच्छी और बड़ी बात तो हो ही नहीं सकती है ।