आप कहे तो भाषण, हम कहे तो गाली ? आपका खून- खून, हमारा बहे तो पानी ? मुरलीमनोहर तिवारी
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मुरलीमनोहर तिवारी (सिपु), बीरगंज ,२६ सेप्टेम्बर |
मधेश आंदोलन का काला सच यही है कि कुछ भी हो जाए, मधेशी नेता एक नहीं हो सकते। इन्हें मधेश से ज्यादा अपने पार्टी का झंडा प्यारा है। अभी सप्तरी में मोर्चा के बैठक में एक होने का कार्यदल बना है, इसके पहले भी बनते आया है, सरकार में जाने के लिए सेकंडो में एक हो जाते है, आंदोलन में एक होने में इतना समय क्यों लग रहा है ?
सबको लग रहा था कि अब कुछ नहीं हो सकता, पर भारत के आगे आने से आश बंधी। भारत के कदम का मधेश ने स्वागत किया है। सभी पहाड़िया हमें राष्ट्रविरोधी कह रहे है। क्या नेपाली होने के लिए भारत का विरोध और चीन का जयकार ही देशभक्ति है ? ये कैसा नक्कली राष्ट्रभक्ति है? आधिकारिक रूप में भारत ने नेपाल के अहित में क्या किया है।
मोर्चा औरउनके कुछ नेताओं को लगता है की वार्ता और हस्ताक्षर उन्हें ही करना है, सारे आंदोलन का श्रेय उन्हें ही मिलना है, बाक़ी मधेशी दल को साथ लेने से आंदोलन करने का श्रेय बट जाएगा। इसलिए एक होने का नाटक हो रहा है। एक होने के लिए सिर्फ एक फ़ोन ही काफी है। जो बड़ा होता है उसे ही पहल करनी पड़ती है। मधेशी नेता इस भ्रम में है कि आंदोलन वे कर रहे है, जबकि हकिकत यह है की आंदोलन मधेशी आवाम कर रहा है। इनके बंद रखने या छोड़ देने से आंदोलन में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। बीरगंज नाका बंद करने में मधेशी दल के अलग-अलग शामियाना लगे थे, लोगो ने जबरदस्ती दोनों को साथ किया। पर्सा के पोखरिया में मधेशी दल को एक साथ आने के लिए बैठक करके सभी के एक होने के लिए एक कमरे में तब तक बंद रखा गया, जब तक ये मान नहीं गए।
मधेशी दल एक नहीं होते तो मधेश को इनके खिलाफ कठोर कदम उठाने होंगे। आंदोलन को संगठन में परिणत करना होगा। शहीद के नाम पर अभी ही कुछ निर्माण कराकर उनको सम्मान देने का काम हो, वरना मधेश के सभी चौक पर पहाड़ियों की मुर्तिया फिर बनेंगी। अगर मधेश के खिलाफ कोई जहर उगलता है, या भारत के झंडे का अपमान करता है तो चीन के खिलाफ बयानबाजी होना स्वभाविक है । अगर ये सब हो गया तो विश्वास करें पहाड़ी बन्दुक से निकली गोली, हमारे पैरो में गिरकर कहेगी “मधेश पाए लागु”
संबिधान जारी होने के बाद मधेश में और आंदोलन में कुछ हद हक़ निराशा आ गयी थी। सबको लग रहा था कि अब कुछ नहीं हो सकता, पर भारत के आगे आने से आश बंधी। भारत के कदम का मधेश ने स्वागत किया है। सभी पहाड़िया हमें राष्ट्रविरोधी कह रहे है। क्या नेपाली होने के लिए भारत का विरोध और चीन का जयकार ही देशभक्ति है ? ये कैसा नक्कली राष्ट्रभक्ति है? आधिकारिक रूप में भारत ने नेपाल के अहित में क्या किया है। संविधान का स्वागत मधेश ने नहीं किया तो भारत और अन्य देशो ने भी नहीं किया। अपनी सुरक्षा के कारण बॉर्डर बंद करना, कहा नेपाल विरोधी है ?
अपने अधिकार के लिए मधेश को आवाज उठाने का अधिकार है की नहीं है ? राजा के खिलाफ सम्पूर्ण नेपाल विश्व जगत से मदद मांगता रहा, उस समय नेपाल स्वाभिमान तेल लेने गया था ? उस समय भारत ने जो किया वह मदद, अब जो किया वह हस्तक्षेप ? आप कहे तो भाषण, हम कहे तो गाली ? आपका खून- खून, हमारा बहे तो पानी ?
अपने नागरिक की हत्या करना, उसे शोषित, गुलाम करना ही नेपाल का राष्ट्रवाद है ? इस आंदोलन में चालीस से ज्यादा शहीद हुए, किसी राष्ट्रवादी के मुंह से सम्वेदना के ‘स’ शब्द तक नहीं निकले। भूकंप के समय भारत से झोली भर-भरकर सहयोग लेने वालो के हाथ भारत का झंडा जलाने में क्यों नहीं कापें ? ये सारे एहसान फरामोश है। जबकि हकीकत है की भारत ने मधेश से ज्यादा मदद पहाड़ में किया है।
आंदोलन में प्रहरी जान लेने की नियत से गोली चलाते है। ये दोषी तो है ही इनसे ज्यादा दोषी पहाड़ी नेता है जिनके आदेश से गोली चल रही है। सबसे ज्यादा दोषी पहाड़ी दल के मधेशी नेता है जिनके दम से ये हत्याए हो रही है। इन्हें सबक सिखाना होगा। आंदोलन के उफान के कारण पहाड़ी दल के दलाल मधेशी बिल में छुपे हुए है। ये ज्यादा दिन तक छुपे नहीं रहेंगे। जैसे ही आंदोलन समाप्त होगा वे बिल से बाहर आएंगे और अपने सत्ता और पैसा के बल से मधेश में अपनी खोई जमीन हासिल करने की कोशिश करेंगें। ऐसा मधेश बिद्रोह १और२ में हो चूका है। अगर आंदोलन लंबा चला तो मधेशी के भीतर पहाड़ी दलो की वायरस का असर कम होता जायेगा। अगर आंदोलन के जनसैलाब को किसी प्रकार संगठन के सूत्र में बांध पाएं तो ठीक वरना ये सब बाड़ के पानी की तरह बह कर जैसे के तैसे हो जाएगा।
मधेशी दल एक नहीं होते तो मधेश को इनके खिलाफ कठोर कदम उठाने होंगे। आंदोलन को संगठन में परिणत करना होगा। शहीद के नाम पर अभी ही कुछ निर्माण कराकर उनको सम्मान देने का काम हो, वरना मधेश के सभी चौक पर पहाड़ियों की मुर्तिया फिर बनेंगी। अगर मधेश के खिलाफ कोई जहर उगलता है, या भारत के झंडे का अपमान करता है तो चीन के खिलाफ बयानबाजी होना स्वभाविक है । अगर ये सब हो गया तो विश्वास करें पहाड़ी बन्दुक से निकली गोली, हमारे पैरो में गिरकर कहेगी “मधेश पाए लागु”। जय मधेश।।
स्रोत;हिमालिनी