नेपालका प्रभाव बिहार चुनाव पर
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विधान परिषद के पूर्व सभापति ताराकांत झा ने विद्यापति टावर चौक पर पार्क बनवाया था. उस समय कहा गया था कि यहां पर शहर के प्रबुद्ध लोग शाम में बैठेंगे, लेकिन बनने के साथ ही इसके दुर्दिन शुरू हो गये. टॉवर के अंदर महाकवि विद्यापति की मूर्ति लगी है, लेकिन इसकी सफाई महीनों से नहीं हुई लगती है. घास ने झाड़ियों का रूप ले लिया है. टावर में लगी घड़ी बंद है. इसके चारों ओर रिक्शे व ढेले लगे हैं. सामने नगर थाना है, जिसे 2013 में उपद्रवियों ने फूंक दिया था. पास में रहिका सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक का परिसर है. यहां राधारमण चौधरी पांच-छह अन्य लोगों के साथ चुनावी गणित पर बात कर रहे हैं. परिसर में खड़ी मोटरसाइकिलों का सहारा लेकर खड़े सभी लोग एक साथ बोल पड़ते हैं -वोट का आधार, तो विकास ही बनेगा इस बार. जाति की बात भले ही राज्य में हो रही है, लेकिन मिथिलांचल के मधुबनी में इसका प्रभाव नहीं है. हां, हमारी स्थानीय समस्याओं पर जनप्रतिनिधियों को ध्यान देना होगा. बॉर्डर से लगनेवाला जिला है, लेकिन नेपाल में जो हालात चल रहे हैं, उससे आपसी विश्वास टूटा है. अब नेपाल जाना मुश्किल है. ये इलाका आपदा प्रभावित भी है. यहां बाढ़ की समस्या रहती है. पानी नेपाल में बरसता है, लेकिन परेशानी मिथिलांचल व कोसी के इलाके में होती है. यहां के बड़े भू-भाग में सालों भर पानी रहता है. इससे निजात की दिशा में कदम उठने चाहिए. इन बातों पर अरुण कुमार भगत, अजय कुमार व विवेकानंद झा सहमति जताते हैं.
जातीय समीकरण पर प्रत्याशी तय
मधुबनी की दस सीटों पर आखिरी चरण में वोटिंग होनी है. प्रमुख गंठबंधनों के प्रत्याशी घोषित होने से चुनाव का माहौल अभी से बनने लगा है. लोग भले विकास के मुद्दे पर वोट देने की बात करते हैं, लेकिन राजनीतिक दलों ने जातीय समीकरण को देखते हुए प्रत्याशी उतारे हैं. मधुबनी सीट सूढ़ी बाहुल्य है, तो राजनगर सुरक्षित सीट पर केवट, कुरमी, ब्राह्मण व भूमिहार वोटरों की संख्या ज्यादा है. झंझारपुर व बेनीपट्टी का इलाका ब्राह्मण बाहुल्य है, जबकि फुलपरास व बाबूबरही इलाके में यादव वोटरों की अधिकता है. लौकही व खजाैली में व्यापारी वर्ग प्रधान भूमिका में हैं. हरलाखी में भूमिहार व बिस्फी सीट पर मुसलिम वोट निर्णायक साबित होंगे.