भोली सूरत दिल के खोटे ! महतो के घायल होने पर पहाड़ी समुदाय में रेवड़ियाँ बँटी
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बिम्मीशर्मा, काठमांडू,२९ दिसम्बर |(व्यग्ंय)

जब से नेपाल में मधेश आन्दोलन शुरु हुआ है तब से सब के चेहरे से नकाब आहिस्ता–आहिस्ता उतर रहा है । और इस नकाब के पीछे छिपा हुआ असली चेहरा सतह में आ रहा है । सूरत तो बाहर से भोला–भाला है पर दिल माशाअल्लाह बहुत ही खोटा और कमीना है । कल तक जो पहाड़िया आपका दोस्त था । आप के द्वारा मधेश और मधेशियों का साथ देने के कारण वह आपका दुश्मन बन जाएगा । क्योंकि आप तो मधेशी हैं और इस देश में मधेशी होना दाउद इब्राहिम होने जैसा ही है विराटनगर में धरना में बैठने गए नेपाल सदभावना पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेन्द्र महतो प्रहरी के डण्डा प्रहार से घायल हुए । तब इन पहाड़ियों की खुशियों का कोई ठिकाना नहीं था । चोट लगी महतो को, वह बेहोश हो कर इलाज कराने अस्पताल पहुंचे । पर यहाँ पहाड़ी समुदाय में तो रेवड़ियाँ बँटने लगी । जैसे इनको कोई करोड़ों रुपए की लाटरी लग गयी हो । कइयों ने तो हो सकता है कि खुशी कें उन्माद में अपने घर में खसी काट कर पार्टी भी कर लिया होगा ।

है न कितनी बीमार मानसिकता ? इनके दिलों में कितनी खोट भरी है । एक किडनी वाले हमारे पीएम ओली जो झापा काण्ड के भी नायक हैं । किसी दिन वह बीमार पड़ जाएँ या स्वर्ग सिधार जाएँं और मधेश मे इस को खुशी मान कर खीर पूरी का लगंर लगे तो इनको कैसा लगेगा ? और मौत तो आनी है आज नहीं तो कल । इसीलिए मधेश आन्दोलन ने सब का पोल खोल दिया है । जो मधेशियों का साथ दे वह देश और सिंह दरबार का दुश्मन है । कोई पहाड़ी समुदाय का हो कर भी मधेश और मधेशियों से प्यार करें, उन के खिलाफ हो रहे अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाए तो वह आपका रिश्तेदार हो कर भी दुश्मन बन जाता है ।

भैयादूज में बहन मान कर भाईटीका लगाने वाला इन्सान मधेश आन्दोलन की वजह से पराया बन जाता है क्योंकि बहन मानी हुई लड़की मधेश से है और मधेशियों को सपोर्ट करती है । इसी मधेश आन्दोलन के चलते किसी नामचीन लेखक या पत्रकार के जन्मदिन पर कोई मधेश से ताल्लुक रखने वाली और मधेशियों को प्यार करनेवाली लड़की जब उन पत्रकार महाशय को जन्मदिन की शुभकामना फेसबुक पर देती है तो वह अपने वॉल से कुछ देर में ही डिलीट कर देते हैं । क्योंकि उस लड़की ने मधेशियों को सपोर्ट किया इसीलिए वह अछूत बन गई है ।

और हद तो तब हो गई जब किसी के अति सुन्दर लेखन शैली से प्रभावित हो कर कोई प्रकाशक और लेखक अपने प्रकाशन गृह के लिए किताब लिखने को बोलता है । अपने ऑफिस में बुला कर उस व्यक्ति से मुलाकात भी करता है । लेकिन कुछ महिनों बाद जब अचानक मधेश आन्दोलन शुरु हो जाता है और उस प्रकाशक को पता चलता है कि किताब लिखने के लिए जिस को कहा था वह मधेश का है और मधेशियों के प्रति भावनात्मक लगाव रखता है । तब उसको अचानक फेसबुक से अनफ्रेण्ड कर देता है और बात करना छोड़ देता है ।

किसी पहाड़ी दोस्त ने अपने मधेश के एक दोस्त से जरुरत पड़ने पर कुछ पैसे उधार मांगे । दोस्त ने मानवीयता दिखाते हुए पैसे दे कर मदद किया । उसने वह पैसे लौटाने में बहुत आनाकानी दिखाई । जब तक पैसे नहीं लिए थे तब वह दोनों दोस्त फोन में रोज बातें करते थे । फेसबुक में भी घण्टों तक चैट करते थे । दोनों मिलते रहते थे आना–जाना लगा रहता था । पर यह क्या ? जैसे ही मधेश आन्दोलन शुरु हुआ और मधेशी ने मधेशियों को सपोर्ट किया तब अचानक उस पहाड़ी दोस्त का रवैया बदलगया । अब उस से बात करना तो दूर उस मधेशी दोस्त का फोन आने पर भी नहीं उठाता है । न ही फेसबुक में उसके मैसेज का रिप्लाई ही करता है । पहले अपने मधेशी दोस्त की प्रशंसा का पुल बांधने वाला वह पहाड़ी आदमी अब मित्रता का पुल ही तोड़ चुका है । क्योंकि मधेश का वह दोस्त उसकी नजर में अपराधी और अछूत है ।

यह है नेपाल में राष्ट्रवाद का नयां फलसफा देश में जितने भी मधेशी हैं सब बिहार और उत्तर प्रदेश से भाग कर आए हुए हैं । इसीलिए यह बिहारी, धोती और भारतीय हैं । इसीलिए उनसे अपराधियों के जैसा व्यवहार करना चाहिए । मधेशी जितने भी पढेÞ लिखें हो एक पहाड़ी मूल का आदमी उनसे तुम या तू कह कर ही बात करता है । कुछ दिन पहले वीरगंज के ठाकुर राम कॉलेज में राजनीतिशास्त्र पढ़ाने वाले एक मधेशी उपप्राध्यापक को मलेशिया से रिटर्न एक आठ क्लास पास और बसे का धंधा करने वाले पहाड़ी ने उनको फेसबुक पर तुम कह कर उन से विवाद किया और उनका अपमान किया । मधेशी जितने भी पढ़े–लिखे और अव्वल हों एक पहाड़ी उनको अपने पैरों के नीचे ही मानता है । इसीलिए मधेशी आन्दोलन कर रहे हैं और उन का आन्दोलन वाजिब है ।

राजेन्द्र महतो को सभी भारतीय और अंगीकृत नागरिकता वाला मानते हंै । महतो, महन्थ ठाकुर, उपेन्द्र यादव अभी सभी पहाड़ियों की नजर में सब से बडे दुश्मन और भारतीय दलाल हंै । यदि ऐसा है तो नेपाल के वर्तमान प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली तो इस देश के सब से बड़े दुश्मन हंै । जब से पीएम ओली ने पद सम्हाला है देश में नईं मुसीबत आन पड़ी है । खाना पकाने वाले गैस और पेट्रोल, डीजल का हाहाकार है । जनता को पेट के लाले पड़ रहे हैं । उधर पीएम ओली संविधान से बाहर जा कर मंत्रियों की नियुक्ति कर रहे हैं । संविधान मे सिर्फ २५ लोगों को ही मंत्री बनाने के विधान हैं । जिस संविधान को ओली उत्कृष्ट बताते थे और जिस संविधान में मधेश या तराई का नाम लिखने से भी उनको चिढ़ थी । उसी संविधान को धत्ता बता कर अपनी मनमानी करना शुरु कर दिया है ।

उधर भूकंप पीड़ित ठंडी की वजह से मर रहे हैं इधर पीएम ओली “निरो” की तरह अपने सरकारी निवास बालुवाटार में सिनेमा और गीत का विमोचन कर रहे हैं । और एक, दो दिन में देश के सभी समस्याओं का समाधान होने का आश्वासन देते है । कभी लोडसेडिगं एक साल के अंदर हट जाने की बात करते हैं तो कभी एक साल के अंदर लोडसेडिगं घट जाने की बात करते है । हमारे आठ क्लास पास पीएम को ‘घ’ और ‘ह’ के बीच का अंतर भी मालूम नहीं है । इसीलिए हपm्तो तबक बिना बिजली के अंधकार मे रहने को बाध्य जनता जब गैस अभाव में खाली पेट आंसू बहाती है तब हमारे पीएम अपने सरकारी निवास में पार्टी मनाते हैं और अपने कायकर्ताओं के बीच अट्टहास करते है ।

जब वीरगंज रक्सौल नाका में कोई लेखक व पत्रकार या नेता मधेश आंदोलन मे समर्थन जताने जाता है तब राजधानी की गुंगी, बहरी जनता उस को भारतीय एजेटं और भारतीय रुपया मे पलने वाला भारु मान लेती है । देश की राजनीति की शैक्षिक और बौद्धिक जमात डा. बाबुराम भट्टराई को भारु मानती है । और उन को पानी पी–पी कर कोसना और गाली देना अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानती है । यह मूढ़ और गूढ़ बौद्धिक जमात खुद किसी न किसी एनजिओ, आईएनजिओ द्वारा संचालित है । पौंड, यूरो और डलर की डकार मार कर बैठी हुई यह जमात दूसरों को भारु मान कर अपने आप को घोर राष्ट्रवादी मान कर चलती है ।

डलर और पौंड से नहायी हुई इसी जमात ने ही देश को धर्मनिरपेक्ष बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह किया था । इसीलिए इस जमात को डर है कि कहीं भारत फिर से नेपाल को हिन्दू राष्ट्र न बना दें । क्योंकि वह तो डॉलर और पौंड डकार चुके हंै, अब इसको उगल पाना मुश्किल है । इसीलिए जो मधेश और मधेशियों से प्रेम करता है और मधेश आंदोलन के प्रति अपना नैतिक समर्थन जताता हैं । उसका मनोवल तोड़ने के लिए भारतीय दलाल और भारु में बिका हुआ आरोप लगाते हैं । क्योंकि यह खुद बिकी हुई और खोखली जमात है । यह मधेश आंदोलन के दर्पण में अपना कालिख पोता हुआ चेहरा नहीं देख पा रहे हैं ।

इस देश के सब से समृद्ध और पढ़े, लिखे लोग दिखने में जितने सुंदर हैं । दिल से उतने ही भद्दे और खोटे हैं । इनके नाम ही सिर्फ बड़े हंै इनका विचार और दर्शन बिल्कुल ही ओछा और छोटा है । यह बस ”ऊँची दुकान और फीकी पकवान” हैं । इनको देख कर पुराना हिन्दी सिनेमा का यह गीत बहुत ही शिद्धत से याद आता है……………

“भोली सूरत दिल के खोटे,

नाम बड़े और दर्शन छोटे ।”

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