आंदोलन से मधेश को अधिकार तो मिलेगा ही,इसी के साथ पुराने हुक्मरान भी बदले जाएंगे
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मुरलीमनोहर तिवारी (सिपु), बीरगंज , ११ दिसम्बर |
आंदोलन के समर्थन में घरों पर लगा हुआ काला झंडा अब फटने लगा है, पर मधेश पर छाया काला बादल हटने का नाम ही नहीं ले रहा है। भारत में मोर्चा को बुलाया गया। सभी नेता अपने धराउ कुरता- बन्दी पहन कर गए। उपेन्द्र यादव तो फेसिअल-ब्लीच तक करा कर गए। सब हिन्दी के बिशेष ज्ञान प्रदर्शित करते दिखे। पर कुछ शंका प्रज्वलित होती है की ये बिजेता बनके गए थे या बिक्रेता ?
मधेश के गलियों में सन्नाटा पसरा हुआ है। चप्पे- चप्पे पर चुपी की चादर छाइ हुई है। एक बहुत बड़े विश्वासघात की आहात सुनाई दे रही है। सब जगह चर्चा है की २२ बुँदे का ड्राफ्ट सीधे दिल्ली से आया था। ८ बुँदे में भी तत्कालीन भारतीय राजदूत शंकर मुखर्जी ने दबाव देकर सहमती कराया गया। इस बार आंदोलन बड़ा है इसलिए भारत बुलाने का बड़ा कदम उठाया गया है। क्योकि अगर भारत को मदद करना है तो बुलाने और समझाने की जरुरत तो पहाड़ी नेता की थी। जिसे मानना है उसे ही बुलाया जाता है।
ये भी गौरतलब है की अगर वाकई भारत के मदद से मधेश का मांग पूरा होने के कगार पे होता तो इसकी बेचैनी काठमांडू में दिखना लिजिमी था। अभी काठमांडू शांत और धैर्यवान दिख रहा है। अभी दूसरे नाको से काठमांडू की आपूर्ति सहज करने की कोशिश हो रही है, जबकि नाकेबंदी का प्रत्यक्ष मार मधेश को ही झेलना पड़ रहा है। इसका मतलब हमारे ही खिलाडी बिपक्षी के तरफ से खेल रहे है।
मधेश के सन्दर्भ में सोचने वाली बात है की जो समाज चार महीने से अपना मुँह और हाथ बंधे संघर्ष कर रहा है। क्या वो किसी कागज के टुकड़े या नक्कली समझौता से मान जाएगा ? अगर मोर्चा आह्वान नहीं भी करता तो भी आंदोलन होता। अगर मोर्चा झुक भी जाए तो भी संघर्ष तो होगा । उस संघर्ष का स्वरुप अलग हो सकता है। उसका असर अलग हो सकता है। इसे अनियंत्रित होने से बचाना सभी मधेशवादी का दायित्व बनता है।
इन सब के बिच सुखद ये है की मोर्चा के विकल्प में संघीय समावेशी मधेशी गठबंधन अपनी पकड़ साबित करने में सफल रहा है। मधेशी एकता के प्रयास में मोर्चा के हठ और एकात्मक चरित्र को गठबंधन ने बेनकाब किया है। मोर्चा कई जगह हारा और थका हुआ प्रतीत हुआ। बिरगंज में जब तस्करों ने नाका पर हमला किया, कांग्रेस ने आंदोलन में घुसपैठ की कोशिश की तो गठबंधन ने ही मुहतोड़ जबाब दिया। अगर मोर्चा कमजोर पड़ा या टुटा-बिका तो भी आंदोलन नहीं टूटेगा।